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आखिर सऊदी अरब को भारत की दोस्ती की दरकार क्यों है

पिछले कुछ सालों में भारत और सबसे बड़े खाड़ी देश सऊदी अरब के बीच रिश्तों में कितना बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है और इसकी एक झलक भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस हफ़्ते सऊदी यात्रा में दिखी.

पिछले तीन साल में मोदी दूसरी बार सऊदी अरब गए हैं. साल 2016 में मोदी की पहली सऊदी यात्रा के दौरान सऊदी अरब के बादशाह सलमान ने उन्हें सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया था. सऊदी की दूसरी यात्रा में मोदी को फ़्यूचर इन्वेस्टमेंट इनीशिएटिव समिट में शामिल होने का मौक़ा मिला. इसे ‘दावोस इन द डेज़र्ट’ यानी रेगिस्तान में डावोस कहा जा रहा है.

भारत और सऊदी अरब की दोस्ती से किसको फायदा या नुक्सान होगा इस पर चर्चा करना आवश्यक नहीं है परन्तु सऊदी अरब को भारत की दोस्ती की आवश्यकता ज्यादा दिख रही है उसके कई कारण है जिस पर गौर करना आवश्यक है :-

भारत में सऊदी अरब का बढता निवेश– दोनों देशों के बीच साल 2017-18 में 27.48 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. सऊदी अरब भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने जा रहा है. ये निवेश ऊर्जा, रिफ़ायनरी, पेट्रोकेमिकल्स, कृषि, और खनन के क्षेत्र में होगा. भारत और सऊदी अरब का रिश्ता धीरे-धीरे सामरिक होता जा रहा है मोदी की सऊदी यात्रा के दौरान दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. पहला समझौता इंडियन स्ट्रैटिजिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड और सऊदी आरामको के बीच हुआ जिसके कारण सऊदी अरब कर्नाटक में तेल रिजर्व रखने का दूसरा प्लांट बनाने में अहम रोल अदा करेगा.

दूसरा समझौता भारत के इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के पश्चिमी एशिया यूनिट और सऊदी अरब की अल-जेरी कंपनी के बीच हुआ. मोदी ने इस दौरान इंडिया-सऊदी स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप काउंसिल के गठन की भी घोषणा की. इस काउंसिल में दोनों देशों का नेतृत्व शामिल होगा जो भारत को अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेगा.

सऊदी अरब को भारत से दोस्ती क्यों है आवश्यक – पूरा विश्व जानता है की  सऊदी अरब का आर्थिक मॉडल ख़तरे में हैं. सऊदी अरब को भारत जैसे सहयोगी देशों की ज़रूरत है. हमें इस पर ध्यान देना चाहिए कि अगस्त में अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने के फ़ैसले के महज एक हफ़्ते के भीतर भारत ने सऊदी अरब में निवेश का ऐलान किया था.

रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) ने अपने ‘ऑयल-केमिकल’ कारोबार का 20 फ़ीसदी शेयर सऊदी अरब की कंपनी अरामको को बेचने का फ़ैसला किया था. इसकी क़ीमत 75 अरब डॉलर है और यह सऊदी अरब में होने वाला अब तक के सबसे बड़े विदेशी निवेशों (FDI) में से एक है.

भारत और सऊदी अरब दोनों ही वैश्विक और क्षेत्रीय संकट के दौर में अपनी विदेश नीति और प्राथमिकताओं को नई परिभाषा दे रहे हैं. भारत के लिए सऊदी अरब और खाड़ी देश मध्य-पूर्व के प्रमुख आकर्षण बन रहे हैं.

वहीं, सऊदी अरब के लिए भारत विश्व की आठ बड़ी शक्तियों में से एक है, जिसके साथ वो अपने ‘विज़न 2030’ के तहत रणनीतिक साझेदारी करना चाहता है. इसलिए अगर भारत और सऊदी अरब के रिश्तों में नई ऊर्जा आती दिख रही है तो इसे लेकर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.