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आतंकवाद पर घिरे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान, कहा पाक सेना और ISI ने दिया आतंकियों को प्रशिक्षण

आतंकवाद को लेकर पाकिस्‍तान जहां दुनियाभर के निशाने पर है, वहीं प्रधानमंत्री इमरान खान ने एकबार फिर कबूल किया कि PAK सेना और खुफिया एजेंसी ISI आतंकियों को प्रशिक्षण देती आई है। उन्‍होंने यह भी कहा कि अमेरिका में 11 सितंबर, 2001 को हुए आतंकी हमले के बाद अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सेना का साथ देकर पाकिस्‍तान ने सबसे बड़ी भूल की। उन्‍होंने तत्‍कालीन सैन्‍य शासक परवेज मुशर्रफ की सरकार पर यह कहते हुए निशाना साधा कि पाकिस्‍तान की पूर्ववर्ती सरकारों को ऐसा वादा नहीं करना चाहिए था, जिसे वे पूरा न पाएं।

इमरान खान का यह कबूलनामा यहां काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (CFR) थिंक टैंक में चर्चा के दौरान आया, जब उनसे पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्‍स मैटिस की उस टिप्‍पणी को लेकर सवाल किया गया था कि अब तक दुनिया के जिस भी देश से उनका साबका पड़ा है, उसमें पाकिस्‍तान ‘सबसे खतरनाक’ है। पाक पीएम ने पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री की इस टिप्‍पणी के जवाब में कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि मैटिस इसे पूरी तरह समझते हैं कि पाकिस्‍तान आखिर ऐसा क्‍यों बना?’

पाकिस्‍तान में आतंकवाद के मौजूदा हालात का ठीकरा लगभग अमेरिका पर फोड़ते हुए इमरान खान ने कहा, ‘1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्‍तान पर कब्‍जा किया, अमेरिका की मदद से पाकिस्‍तान ने इसका विरोध किया। ISI ने दुनियाभर से आए मुसलमानों को सोवियत संघ के खिलाफ जेहाद के लिए प्रशिक्षित किया। इस तरह सोवियत संघ से लड़ने के लिए कई चरमपंथी संगठन तैयार हुए… उस वक्‍त जिहादी हीरो थे। फिर 1989 का वक्‍त आया, जब सोवियत संघ अफगानिस्‍तान से चला गया। इसके साथ ही अमेरिका भी चला गया और रह गए हम इन संगठनों के साथ।’

इमरान खान यहीं नहीं रुके। उन्‍होंने आगे कहा, ‘फिर 9/11 हुआ और पाकिस्‍तान ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका का साथ दिया। अब हमें इन्हीं समूहों को आतंकवादी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करनी है। इससे पहले उन्‍हें बताया गया था कि विदेशी आधिपत्‍य के खिलाफ जंग जिहाद है, पर जब अमेरिका एक बार फिर (9/11 को अंजाम देने वाले अलकायदा के खिलाफ कार्रवाई के लिए) अफगानिस्‍तान में दाखिल हुआ तो उन्‍हें आतंकी ठहरा दिया गया।’

इमरान खान इससे पहले भी पाकिस्‍तान में आतंकवाद को लेकर अमेरिका को जिम्‍मेदार ठहरा चुके हैं। करीब दो सप्‍ताह पहले ही उन्‍होंने कहा था कि 1980 के दशक में जब सोवियत सेना ने अफगानिस्‍तान पर हमला किया था तब मुजाहिदों को जिहाद के लिए उकसाया गया था और अमेरिकी मदद तथा CIA के निर्देशन में उन्‍हें प्रशिक्षित किया गया था, लेकिन दशकों बाद जब अमेरिकी फौज ने अफगानिस्तान में दखल दी तो पूरे घटनाक्रम को अलग रूप दे दिया गया।