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“फुंगसुक वांगड़ू” (फिल्म-थ्री इडियट्स) तो याद ही होंगे आपको, इन्होंने दिए ऐसे शानदार सुझाव कि बदल जाएगा देश में बहुत कुछ

फुंगसुक वांगड़ू एक ऐसा नाम जो फिल्म थ्री इडियट्स के बाद बहुत प्रसिद्द हुआ । फिल्म में  फुंगसुक वांगड़ू का किरदार निभाने वाले आमिर खान थे ।आमिर ने इस किरदार को इतना बढ़िया निभाया कि फुंगसुक वांगड़ू नाम बच्चा बच्चा जान गया और तब लोगो को पता चला यह एक सच्ची कहानी है और इस नाम का  असली किरदार लद्दाख में रहने वाले इंजीनियर व इनोवेटर सोनम वांगचुक हैं।

सोनम वांगचुक वह व्यक्ति हैं जिन्होंने शिक्षा को एक नई परिभाषा दी है। कुछ समय पहले सोनम वांगचुक दिल्ली आए थे, जब उन्होंने यहां के सरकारी स्कूलों में चल रहे हैप्पीनेस क्लास में हिस्सा लिया। यहां पर उन्होंने ‘समानता के लिए शिक्षा और सामाजित उत्तरदायित्व’ विषय पर आयोजित कॉन्फ्रेंस में भी हिस्सा लिया। इस  कॉन्फ्रेंस में सोनम  वांगचुक ने देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए ऐसे सुझाव दिए, जिन पर सरकार अमल करें तो बहुत सुधार हो जाए ।

हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के निदेशक वांगचुक ने बताया  कि ‘मैंने कई देशों की यात्रा की है। अगर हम शिक्षा में समानता की बात करें, तो मैंने अपने देश से ज्यादा बुरी स्थिति कहीं की भी नहीं देखी। ये वो देश है जहां 5 से 10 फीसदी बच्चे ऐसे स्कूलों में पढ़ते हैं जो अमेरिका के स्कूलों से भी बेहतर हैं। वहीं, करीब 90 फीसदी बच्चों के स्कूलों की स्थिति बद से बदतर है ।’

वांगचुक ने कुछ ऐसे सुझाव दिए जो वास्तविकता में बहुत उत्तम हैं और सरकार अगर ईमानदारी से अमल करें तो शिक्षा के छेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन साबित हो सकता है

  • सबसे पहले तो वांगचुक ने देश के सरकारी स्कूलों को मजबूत बनाने की बात की। कहा कि इसके बिना देश में शिक्षा की बेहतरी संभव नहीं है।
  • वांगचुक ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों ,अफसरों और जन प्रतिनिधियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ें। अगर इन सभी प्रतिनिधियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे, तो उनकी स्थिति पर कहीं ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। अभी स्थिति खराब है क्योंकि जिन लोगों के पास संसदीय स्तर पर आवाज उठाने का अधिकार है, उनके बच्चे उन स्कूलों में पढ़ते ही नहीं।
  • वांगचुक ने इसके लिए सरकार से नीति बनाए जाने की भी अपील की। कहा, ‘हम हर किसी को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। लेकिन विधायकों व सांसदों जैसे जन प्रतिनिधियों के लिए एक नीति जरूर बनाई जानी चाहिए। ताकि वे भी उन सेवाओं का लाभ उठाएं जिन्हें वे दूसरों को देने का दावा करते हैं। मैं गारंटी दे सकता हूं कि अगर ऐसा होता है तो पांच सालों में उनके बच्चे कोई खामियाजा नहीं भुगतेंगे, बल्कि बाकियों के बच्चों की बेहतरी हो पाएगी। शिक्षकों का प्रशिक्षण समय पर होगा। किताबें बेहतर होंगी।’