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भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग जिसकी दीवार के पेट में तोप के गोले समा जाते थे |

लौहगढ़ का किला

भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग मिट्टी का यह किला तोपों पर पड़ा था भारी 13 युद्धों में भी नहीं भेद पाए थे अंग्रेज। राजस्थान के भरतपुर जिले में स्तिथ लौहगढ़ के किले’ को भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है क्योंकि मिट्टी से बने इस किले को कभी कोई नहीं जीत पाया यहाँ तक की अंग्रेज भी नहीं जिन्होंने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों के साथ आक्रमण किया था।

यह राजस्थान के अन्य किलों के जितना विशाल नहीं है लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है। इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है निर्माण के समय पहले किले की चौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गयी इन पर तोपो के गोलो का असर नहीं हो इसके लिये इन दीवारों के चारो ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गयी और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमे पानी भरा गया। ऐसे में पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नही अस्म्भव था यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं था क्योंकि तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती थी ऐसी असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है।

इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर सके राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें जो मिट्टी से बनी हुई हैं इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने
से कम नहीं था। 13 बार के हमले के बाद भी अंग्रेज नहीं भेद सके इस किले को।

इस फौलादी किले को राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार भी कहा जाता है यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे 13 आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई |